
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के पास बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने कड़ा रुख अपनाया है। हमले में 26 टूरिस्ट्स की जान जाने के बाद, भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ 1960 की सिंधु जल संधि को स्थगित करने का ऐतिहासिक फैसला लिया है। गुरुवार देर रात भारत ने इस संबंध में पाकिस्तान को आधिकारिक पत्र भी भेज दिया।
भारत सरकार की ओर से जल शक्ति मंत्रालय की सचिव देबाश्री मुखर्जी ने पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव मुर्तज़ा को एक औपचारिक पत्र लिखा। इस पत्र में स्पष्ट किया गया है कि:
"सिंधु जल संधि आपसी विश्वास और सौहार्द्र के माहौल में की गई थी। लेकिन जब द्विपक्षीय संबंधों में निरंतर कटुता और आतंकवाद को समर्थन जैसी स्थितियां बनें, तो ऐसी संधियों को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।"
सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी। इसके तहत भारत और पाकिस्तान को सिंधु नदी प्रणाली की अलग-अलग नदियों पर अधिकार मिला –
भारत को रावी, ब्यास और सतलुज का पूर्ण उपयोग,
जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब पर प्राथमिक अधिकार।
अब भारत ने इस समझौते को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया है, जिससे आने वाले समय में पाकिस्तान की जल आपूर्ति पर प्रभाव पड़ सकता है।
22 अप्रैल को बैसरन घाटी, जो कि टूरिज्म के लिहाज से बेहद लोकप्रिय जगह है, वहां आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी। इस हमले में 26 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें एक नेपाली नागरिक भी शामिल था। हमले में 10 से ज्यादा लोग घायल भी हुए।
बताया जा रहा है कि हमले में 5 आतंकी शामिल थे, जिनमें 3 स्थानीय और 2 विदेशी थे। यह हमला सुनियोजित था और आतंकियों ने पहाड़ी जंगलों से आकर फायरिंग की, फिर वापस उसी दिशा में भाग गए।
इस हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ पांच सख्त कदम उठाए हैं। इनमें प्रमुख हैं:
सिंधु जल संधि को स्थगित करना।
पाकिस्तान को कूटनीतिक स्तर पर वैश्विक मंचों पर बेनकाब करना।
सीमा पर सुरक्षा और इंटेलिजेंस ऑपरेशन्स को और तेज करना।
आतंकियों के खिलाफ सीमापार जवाबी कार्रवाई की संभावनाएं खुली रखना।
जम्मू-कश्मीर में टूरिज्म ज़ोन में सुरक्षा का पुनर्गठन।
भारत का यह कदम न केवल पाकिस्तान को चेतावनी देने के रूप में देखा जा रहा है, बल्कि यह एक बड़ा राजनीतिक और रणनीतिक संदेश भी है कि अब भारत आतंकवाद को सहन नहीं करेगा।
डिफेंस एक्सपर्ट्स का कहना है कि जल संधि जैसे समझौतों पर पुनर्विचार करना पाकिस्तान के लिए दबाव की रणनीति के तौर पर काफी असरदार साबित हो सकता है