
जब हम भारत की सैन्य शक्ति की बात करते हैं, तो मिसाइल प्रौद्योगिकी उसका सबसे महत्वपूर्ण और गौरवपूर्ण हिस्सा बन चुकी है। आज जिस ‘ब्रह्मास्त्र’ को भारत विश्व मंच पर सामरिक शक्ति का प्रतीक बना चुका है, उसका सफर एक कठिन, धैर्यपूर्ण और वैज्ञानिक समर्पण की मिसाल है। स्वतंत्रता के पश्चात भारत ने जिस वैज्ञानिक और सामरिक आत्मनिर्भरता का स्वप्न देखा था, उसकी एक सजीव प्रतिमा आज उसकी मिसाइल शक्ति बन चुकी है। "ब्रह्मास्त्र" अब केवल पौराणिक कथा का हिस्सा नहीं, बल्कि आधुनिक भारत की सैन्य-वैज्ञानिक परंपरा का वास्तविक प्रतीक है।
मिसाइल युग की शुरुआत:
भारत में मिसाइल विकास कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत 1983 में 'एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम' (IGMDP) के अंतर्गत हुई। इस कार्यक्रम का नेतृत्व डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने किया, जिन्होंने ‘मिसाइल मैन ऑफ इंडिया’ की उपाधि पाई। इस परियोजना के तहत पांच प्रमुख मिसाइलें विकसित की गईं:
पृथ्वी – सतह से सतह पर मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल
त्रिशूल – कम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल
आकाश – मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल
नाग – टैंक विध्वंसक निर्देशित मिसाइल
अग्नि– मध्यम से लंबी दूरी तक मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि मिसाइल, खासतौर पर, भारत के सामरिक ढांचे की रीढ़ बन गई। इसकी मारक क्षमता कुछ सौ किलोमीटर से लेकर 5000 किलोमीटर तक की है, जिससे यह एशिया और यूरोप के बड़े हिस्से को कवर कर सकती है।
परमाणु परीक्षण और सामरिक आत्मनिर्भरता:
1998 के पोखरण-2 परमाणु परीक्षणों के बाद भारत ने 'नो फर्स्ट यूज' (पहले हमला न करने) की नीति के तहत अपनी परमाणु मिसाइल क्षमता को बढ़ावा दिया। मिसाइलों का विकास अब केवल रक्षा नहीं, बल्कि शक्ति संतुलन बनाए रखने की दिशा में किया जाने लगा।
अग्नि-5 जैसी मिसाइलों की सफलता के साथ भारत ने ‘इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल’ (ICBM) क्लब में प्रवेश कर लिया, जो अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के समकक्ष है।
भारत की वायु रक्षा प्रणाली...
रणनीतिक रूप से चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है। काउंटर ड्रोन एवं MPAD (मेन पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम) शॉर्ट रेंज (15-40 किमी), मीडियम रेंज (30-100 किमी) और लॉन्ग रेंज (100 किमी से अधिक)। इन सभी स्तरों पर भारत ने स्वदेशी तकनीकों के साथ-साथ वैश्विक सहयोग से एक संतुलित और बहुस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था बनाई है। भविष्य की दिशा की बात करें तो भारत अब Akash-NG और XRSAM जैसी नई परियोजनाओं पर काम कर रहा है, जिनसे वायु रक्षा और अधिक प्रभावशाली तथा आत्मनिर्भर बन सकेगी।
एयर डिफेंस के हिस्से....
एक प्रभावी एयर डिफेंस सिस्टम कई प्रमुख हिस्सों से मिलकर बनता है, जो मिलकर देश की वायु सीमा की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। रडार सिस्टम- जो हवाई लक्ष्यों जैसे लड़ाकू विमान, ड्रोन या मिसाइलों का पता लगाने और ट्रैक करने का कार्य करता है। कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (C2), जो प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण कर निर्णय लेता है कि किस लक्ष्य को कब और कैसे नष्ट किया जाए। मिसाइल इंटरसेप्टर सिस्टम, जिसमें शॉर्ट, मीडियम और लॉन्ग रेंज की मिसाइलें शामिल होती हैं, जो दुश्मन के हवाई लक्ष्यों को निशाना बनाती हैं। एवम सपोर्टिंग इक्विपमेंट ट्रांसपोर्ट व्हीकल, मोबाइल लॉन्चर और कनेक्टिविटी नेटवर्क पूरे सिस्टम को गतिशील और प्रतिक्रियाशील बनाते हैं। इन सभी हिस्सों का समन्वय ही एयर डिफेंस सिस्टम को बहुस्तरीय, लचीला और प्रभावशाली बनाता है।
ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम .....
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हर भारतीय की जबान पर आने वाले ब्रह्मोस मिसाइल ने पाकिस्तान में दहशत का माहौल पैदा कर दिया । ब्रह्मोस मिसाइल भारत और रूस के संयुक्त उपक्रम से विकसित की गई एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नाम से रखा गया है। यह मिसाइल ब्रह्मोस एयरोस्पेस द्वारा निर्मित है, और यह भूमि, जल तथा वायु – तीनों प्लेटफॉर्म से लॉन्च की जा सकती है।
मुख्य विशेषताएँ:
स्पीड: ब्रह्मोस की गति Mach 2.8 से Mach 3.5 (यानी आवाज की गति से लगभग 3 गुना) होती है, जो इसे दुश्मन की वायु-रक्षा प्रणालियों के लिए पकड़ पाना बेहद कठिन बनाती है।
रेंज: वर्तमान में इसकी मारक क्षमता 450-500 किलोमीटर तक है, जबकि ब्रह्मोस-2 हाइपरसोनिक संस्करण पर कार्य जारी है।
सटीकता: यह ‘Fire and Forget’ सिद्धांत पर आधारित है, यानी लक्ष्य को लॉक करने के बाद स्वयं मार्ग तय करती है और सटीकता से निशाना साधती है (CEP < 1 meter)।
टॉपोग्राफिक अडैप्टेशन: यह पृथ्वी की सतह के बेहद करीब उड़ती है, जिससे रडार इसे पकड़ नहीं पाते।
दूसरी मिसाइलों से श्रेष्ठता:
अमेरिका की टॉमहॉक या चीन की CJ-10 जैसी क्रूज मिसाइलों की तुलना में ब्रह्मोस तेज, सटीक और कठिन-रडार-डिटेक्टेबल है।
यह सर्जिकल स्ट्राइक और प्री-एम्प्टिव अटैक के लिए आदर्श मानी जाती है क्योंकि इसकी प्रतिक्रिया समय बहुत कम होता है। ब्रह्मोस को भारत ने वास्तविक युद्ध परिदृश्यों में तैनात किया है, जिससे यह न केवल तकनीकी रूप से उत्कृष्ट है, बल्कि प्रयोग के स्तर पर भी परिपक्व हो चुकी है। हाल ही में सुखोई-30MKI से दागे गए ब्रह्मोस एयर लॉन्च संस्करण ने इसे वायुसेना के लिए एक निर्णायक अस्त्र बना दिया है।
ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस मिसाइल की भूमिका:-
ऑपरेशन सिंदूर (मई 2025) में ब्रह्मोस मिसाइल की भूमिका रणनीतिक और निर्णायक रही। इस ऑपरेशन में भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक से आगे बढ़ते हुए, गहराई तक स्थित आतंकी लॉजिस्टिक और सपोर्ट हब्स को निशाना बनाया।
मुख्य उपयोग:
LoC पार आतंकी ट्रेनिंग कैंपों और लॉजिस्टिक बेस पर ब्रह्मोस से लॉन्ग-रेंज प्रीसिशन स्ट्राइक की गई।
विशेष रूप से एक पाकिस्तानी एयरबेस के निकट स्थित टेरर लॉन्च पैड को ब्रह्मोस के ज़रिये निशाना बनाया गया, जिससे पाकिस्तान की वायु गतिविधियाँ क्षीण हो गईं।
ऑपरेशन में ब्रह्मोस के नौसेना संस्करण का उपयोग कर कराची के उत्तर में स्थित एक गुप्त समुद्री डिपो को भी नष्ट किया गया।
यह पहली बार था जब भारत ने किसी एटमी पावर वाले देश के अंदर मौजूद रणनीतिक केंद्र पर इतनी सटीकता से ब्रह्मोस का उपयोग किया। इससे यह भी संकेत गया कि भारत अब मिसाइल शक्ति के जरिए “कॉन्फिडेंस डिटरेंस” (आत्मविश्वासी प्रतिरोध) की नीति अपना रहा है।
आत्मनिर्भर भारत और रक्षा निर्माण:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आरंभ की गई ‘आत्मनिर्भर भारत’ नीति के तहत आज भारत न केवल अपने लिए मिसाइल बना रहा है, बल्कि ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों का निर्यात भी कर रहा है। फिलीपींस को ब्रह्मोस की आपूर्ति इसका प्रमाण है। वियतनाम, इंडोनेशिया और यूएई जैसे देश भी इसमें रुचि दिखा रहे हैं। DRDO (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) के वैज्ञानिकों ने हाल के वर्षों में SMART टॉरपीडो सिस्टम, QRSAM और पृथ्वी डिफेंस व्हीकल (PDV) जैसी तकनीकें भी विकसित की हैं, जो मिसाइल रक्षा प्रणाली को नया आयाम देती हैं।
भविष्य की ओर बढ़ते कदम:
अब भारत हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक की ओर बढ़ रहा है। DRDO द्वारा विकसित किया जा रहा हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) इसकी मिसाल है, जो Mach 6 (ध्वनि की गति से 6 गुना) की रफ्तार से उड़ने वाली प्रणाली है। इसके अलावा, भारत एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (ASAT) की क्षमता भी रखता है, जो अंतरिक्ष में दुश्मन के उपग्रह को नष्ट कर सकती है। 2019 में 'मिशन शक्ति' के अंतर्गत भारत ने यह क्षमता विश्व को प्रदर्शित कर दी।
लखनऊ में ब्रह्मोस मिसाइल निर्माण संयंत्र का उद्घाटन — एक ऐतिहासिक कदम
11 मई 2025 को, भारत के रक्षा मंत्री द्वारा उत्तर प्रदेश के लखनऊ स्थित ब्रह्मोस मिसाइल निर्माण इकाई (BrahMos Missile Manufacturing Unit) का औपचारिक उद्घाटन किया गया। यह फैक्ट्री UP Defence Corridor का एक प्रमुख हिस्सा है और इसे ‘Make in India’ व ‘Atmanirbhar Bharat’ अभियान की बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
इस फैक्ट्री में ब्रह्मोस के अत्याधुनिक संस्करणों का निर्माण, परीक्षण और एसेम्बली की जाएगी। इसका लक्ष्य न केवल भारतीय सेनाओं की मांग पूरी करना है, बल्कि विदेशी निर्यात के लिए भी मिसाइलें तैयार करना है। यहाँ पर लगभग 5,000 से अधिक रोजगार अवसर सृजित होंगे और यह भारत को मिसाइल निर्माण में आत्मनिर्भर राष्ट्र बनने की दिशा में मजबूती देगा।
निष्कर्ष:
भारत की मिसाइल यात्रा केवल सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं, बल्कि वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता, रणनीतिक परिपक्वता और वैश्विक संतुलन की दिशा में उठाया गया कदम है। आज जब भारत विश्व राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभा रहा है, ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें उसकी कूटनीतिक और सामरिक शक्ति का प्रतीक बन चुकी हैं।
जहां एक ओर यह देश को बाहरी खतरों से सुरक्षित रखती हैं, वहीं दूसरी ओर 'मेक इन इंडिया' और 'डिफेंस एक्सपोर्ट' के माध्यम से आत्मनिर्भरता की मिसाल भी पेश करती हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ब्रह्मास्त्र अब केवल पौराणिक गाथाओं तक सीमित नहीं, बल्कि आधुनिक भारत की मिसाइल प्रणाली में सजीव हो चुका है। भारत की मिसाइल यात्रा ‘पृथ्वी’ से शुरू होकर ‘ब्रह्मोस’ और अब ‘हाइपरसोनिक’ की ओर अग्रसर है। यह यात्रा विज्ञान, समर्पण और आत्मबल का ऐसा संगम है, जिसे आने वाली पीढ़ियाँ न केवल गर्व से देखेंगी, बल्कि उससे प्रेरणा भी लें