
रैगिंग देशभर में एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जो हर साल सैकड़ों छात्रों की जान ले रही है। हाल ही में केरल के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ नर्सिंग, कोट्टायम और गवर्नमेंट कॉलेज, करयावट्टोम, तिरुवनंतपुरम में रैगिंग की घटनाओं ने इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। हर साल रैगिंग के कारण कई छात्रों की मौत हो जाती है। पिछले एक दशक में रैगिंग से संबंधित 8,000 से अधिक शिकायतें दर्ज की गई हैं, लेकिन हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है।
रैगिंग की शिकायतों में लगातार बढ़ोतरी
यूजीसी हेल्पलाइन पर पिछले दस वर्षों में रैगिंग से जुड़ी 8,000 से अधिक शिकायतें दर्ज की गई हैं। 2012 से 2022 के बीच इन शिकायतों में 208 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। 2022 में 1,103 शिकायतें आईं, और अक्टूबर 2023 तक 756 शिकायतें दर्ज की गईं। इन घटनाओं से यह स्पष्ट हो रहा है कि रैगिंग छात्रों की मानसिक और शारीरिक स्थिति पर गहरा असर डाल रही है।
राज्यवार रैगिंग से हुई मौतें
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, रैगिंग के कारण अब तक 78 छात्रों की मौत हो चुकी है। इस मामले में महाराष्ट्र सबसे ऊपर है, जहां 10 छात्रों की जान गई। इसके बाद उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में 7-7, तेलंगाना में 6, आंध्र प्रदेश में 5 और मध्य प्रदेश में 4 मौतें हुईं। उत्तर प्रदेश में रैगिंग की शिकायतों की संख्या भी सबसे अधिक रही है, जहां 1,202 शिकायतें आई हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश (795), पश्चिम बंगाल (728) और ओडिशा (517) का नंबर आता है।
यूजीसी अध्यक्ष का सख्त रुख
यूजीसी अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार ने इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने कहा कि रैगिंग के खिलाफ लगातार कदम उठाए जा रहे हैं और इसे केवल यूजीसी की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि संस्थानों को भी इस पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। एंटी-रैगिंग नियमों का सख्ती से पालन करना जरूरी है। रैगिंग छात्रों और उनके परिवारों के लिए गंभीर संकट बन चुका है, और इस पर प्रभावी नियंत्रण पाने के लिए यूजीसी और राज्य सरकारों को मिलकर ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि छात्रों का भविष्य सुरक्षित रहे और रैगिंग जैसी घटनाओं का अंत हो सके।