
राजस्थान हाईकोर्ट में आज उस याचिका पर सुनवाई हुई जिसमें अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह परिसर में शिव मंदिर होने के दावे वाले वाद की सुनवाई पर रोक लगाने की मांग की गई है। यह याचिका दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान द्वारा दायर की गई थी।
जस्टिस विनोद कुमार भारवानी की अदालत में सुनवाई के दौरान अंजुमन कमेटी की ओर से अधिवक्ता आशीष कुमार सिंह और वागीश कुमार सिंह ने दलील दी कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले ही निर्देश दे चुका है कि देशभर की कोई भी अदालत ऐसे मामलों की सुनवाई न करे। इसके बावजूद अजमेर सिविल कोर्ट में यह वाद विचाराधीन है, जो कानून का उल्लंघन है।
वहीं केंद्र सरकार की ओर से एडिश्नल सॉलिसिटर जनरल आरडी रस्तोगी ने इस याचिका का विरोध करते हुए कहा कि अंजुमन कमेटी इस मामले में कानूनी रूप से पक्षकार (पार्टी) नहीं है, इसलिए उनकी याचिका सुनवाई योग्य नहीं मानी जा सकती।
अदालत ने अब इस मामले में एक सप्ताह बाद फिर से सुनवाई तय की है।
सुनवाई के लिए जयपुर पहुंचे अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि दरगाह शरीफ सदियों से शांति, भाईचारे और कौमी एकता का प्रतीक रही है। इस प्रकार की याचिकाएं केवल धार्मिक सौहार्द को बिगाड़ने के प्रयास हैं। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत तथ्यों का कोई ऐतिहासिक या प्रमाणिक महत्व नहीं है।
हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने 23 सितंबर 2024 को अजमेर सिविल कोर्ट में वाद दायर कर दावा किया कि दरगाह परिसर में भगवान संकट मोचन महादेव का प्राचीन मंदिर स्थित है। इस वाद में दरगाह कमेटी के अलावा अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को पक्षकार बनाया गया है।
इस मामले की अगली सुनवाई 19 अप्रैल 2025 को अजमेर के सिविल जज एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (अजमेर पश्चिम) की अदालत में होनी है।
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