
भारतीय नौसेना, जिसे हम इंडियन नेवी के नाम से जानते हैं, देश की सुरक्षा और समुद्री रक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत की समुद्री सीमाओं की रक्षा करना और समुद्र में किसी भी प्रकार के खतरे का सामना करना है। भारतीय नौसेना न केवल देश की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत के हितों की रक्षा करती है ¹।
इंडियन नेवी का इतिहास
भारतीय नौसेना का इतिहास 1612 ई. से शुरू होता है, जब इसे ईस्ट इंडिया कंपनी की युद्धकारिणी सेना के रूप में "इंडियन मेरीन" के नाम से स्थापित किया गया। यह नाम 1685 में बदलकर "बंबई मेरीन" रखा गया, जो 1830 तक चला। भारतीय नौसेना को एक संगठित और अनुशासित बल के रूप में मान्यता तब मिली जब भारतीय विधानपरिषद ने 8 सितंबर 1934 को भारतीय नौसेना अनुशासन अधिनियम पारित किया, जिसके परिणामस्वरूप रॉयल इंडियन नेवी का गठन हुआ।
विस्तार और आधुनिकीकरण
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, भारतीय नौसेना का विस्तार हुआ। इस समय इसके सदस्यों की संख्या 2,000 से बढ़कर लगभग 30,000 हो गई और बेड़े में आधुनिक जहाजों की संख्या भी बढ़ी। स्वतंत्रता के समय भारत की नौसेना केवल नाममात्र की थी, क्योंकि विभाजन के कारण लगभग एक तिहाई सेना पाकिस्तान को चली गई थी। तब भारत सरकार ने तत्कालीन स्थिति को देखते हुए नौसेना के विस्तार की योजना बनाई और पहले वर्ष में ही ग्रेट ब्रिटेन से एक क्रूजर "दिल्ली" खरीदा। इसके बाद कई अन्य युद्धपोत जैसे ध्वंसक "राजपूत", "राणा", "रणजीत", और अन्य जहाजों का अधिग्रहण किया गया।
वर्तमान स्थिति
वर्तमान में, भारतीय नौसेना एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय शक्ति मानी जाती है और इसे एक ब्लू-वाटर नवी बनाने की दिशा में कार्यरत है। भारतीय नौसेना विभिन्न प्रकार के अभियानों में भाग लेती है, जैसे कि मानवता की सहायता, आपदा राहत और अन्य देशों के साथ सहयोगात्मक अभ्यास।
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